सूर्य और हवा मैं बलवान कौन?
सूर्य और हवा मैं बलवान कौन? इस कहानी मैं आप सभी का स्वागत है। आज हम बाल कथा के इस भाग मैं “सूर्य और हवा मैं बलवान कौन?” कहानी पर बात करेंगे और एक बहुत ही सुन्दर कहानी पड़ेंगे।
सूर्य और हवा मैं बलवान कौन? कहानी मैं सूर्य और हवा मैं एक बहस होती है के उनमे बलवान कौन है।
अंत मैं ये फैसला भी हो जाता है के दोनों मैंबलशाली कौन है और घमंडी कौन है।
आइये विस्तार से पड़ते हैं कहानी।
बाल कथा। सूर्य और हवा मैं बलवान कौन?
हवा का घमंड।
एक समय की बात है हवा मस्त हो कर चल रहे थी और मन मैं ये सोचती थी के उससे बलवान कोई नहीं है।
हवा सोचती थी के वो ही बलवान है जब वो विकराल रूप धरती है तो सबकुछ तहस नहस कर देती है और उसके मुकाबले कोई नहीं।
जब हवा अपने पुरे वेग से बहती है तो बड़े बड़े जंगल कांपने लगते है और पेड़ जड़ों से उखड जाते है।
पहाड़ भी हवा के बेग से टूटने लगते हैं इंसान भी छिपने की तलाश करता है और कोई भी हवा के सामने टिक नहीं सकता।
अपने इन्ही घमंड से भरे ख्यालों मैं हवा बहती चली जा रही थी।
सूर्य का सामना।
के अचानक सूर्य उसके सामने आ गया और पूछा “इतना इतरा कर क्यों चल रही हो, तुम्हारी चाल से तुम्हारा घमंड साफ़ नज़र आता है।”
“मैं इतरा कर घमंड से क्यों न चलूँ, मुझसे अधिक बलवान कौन है”। हवा ने उत्तर दिया।
सूर्य ने बिनम्रता से उत्तर दिया “ईश्वर ने हर चीज़ को कुछ इस तरह बनाया है के उससे भी बलवान कुछ न कुछ ब्रहम्माण्ड मैं मौजूद है और सबसे शक्तिशाली केवल ईश्वर है।”
अपने घमंड को सातवें आसमान पर पंहुचा कर हवा ने कहा “मुझे तो ऐसा कोई न मिला जो मुझसे भी अधिक बलवान हो।”
“तुम्हारे सामने खड़ा ये सूर्य तुमसे अधिक बलशाली है पर इसपर मैं घमंड नहीं करता तुम्हें भी नहीं करना चाइए।” सूर्य ने कहा।
“तुम मुझसे अधिक बलशाली इससे अधिक हास्यासपत बात नहीं हो सकती” हवा ने कहकहा लगाया।
सूर्य और हवा की प्रतिस्पर्धा।
“सूर्य और हवा मैं बलवान कौन इस बात का फैसला एक प्रतिस्पर्धा के कर लेते हैं” सूर्य ने सुझाव दिया जिसे हवा ने स्वीकार कर लिया।
सूर्य ने इक आदमी की तरफ इशारा किया जो अपने उप्पर एक शाल ओड़ा हुआ था और कही जा रहा था। “जो इस आदमी की ये शाल उतरवा देगा वही सबसे अधिक बलशाली होगा।” हवा ने सूर्य की ये प्रतिस्पर्धा स्वीकार कर ली।
अब पहली बारी हवा की थी। हवा तेज़ बेग से बहने लगी जिससे उस आदमी की शाल उड़ने लगी। शाल को उड़ते देख आदमी ने शाल को मज़बूती से पकड़ लिया।
आदमी शाल को मज़बूती से पकड़ कर आगे बढ़ने लगा किन्तु हवा अपना वेग लगातार बढ़ाने लगी जिससे उसकी शाल भी उड़ने लगी।
किन्तु उस आदमी ने अपनी शाल को नहीं छोड़ा वो जनता था इस शाल से वो हवा और उड़ती मिटटी से बचा हुआ है।
हवा ने जब विकताल रूप धरा तो वो आदमी अपनी साल को अपने चरों ओर लपेट कर बाँध्ने लगा, जिसे देख हवा ने अपनी हार स्वीकार कर ली।
घमंड की हार।
अब बारी सूर्य की थी। सूर्य हल्का मुस्कुराया और गर्मी बढ़ गई, आदमी अपनी राह चलने लगा।
अपनी मुस्कराहट को जैसे ही सूर्य ने थोड़ा बढ़ाया तो गर्मी के करण उस आदमी ने अपनी शॉल को थोड़ा ढीला कर दिया।
जैसे ही सूर्य ने गर्मी को थोड़ा और बढ़ाया तो उस आदमी ने आसमान की तरफ देखा और अपनी शाल को उतार कर अपने हाथ मैं ले लिया।
मुस्कुराते हुए सूर्य ने हवा से कहा “अपने पुरे विकराल रूप के बाद भी तुम उसकी एक शाल न उतरवा सकीं और देखो मेरी थोड़ी सी कोशिश से ही ये काम हो गया।”
हवा का घमंड पूरी तरह टूट गया। हवा अपनी हार स्वीकार कर अपना सर घुका कर चली गई।
नैतिकता।